जम्मू और कश्मीर

White Collar Terrorist Module: जम्मू-कश्मीर में आतंक का नया चेहरा, व्हाइट-कालर मॉड्यूल ने सुरक्षा एजेंसियों की नींद उड़ाई

White Collar Terrorist Module: जम्मू कश्मीर में शांति को बिगाड़ने और सुरक्षा बलों की नजरों से बचने के लिए आतंकी संगठनों ने एक नई साजिश रची है। अब ऐसे युवाओं को आतंक और बम धमाकों के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है जिनका कोई आपराधिक इतिहास नहीं है और जिनका अलगाववादी संगठनों से भी कोई संबंध नहीं रहा है। यह नया तरीका सुरक्षा एजेंसियों के लिए एक बड़ी चुनौती बनकर सामने आया है क्योंकि इन युवाओं को पहचान पाना बेहद कठिन हो गया है। इस मॉड्यूल के खुलासे के बाद सुरक्षा ढांचे में नई रणनीतियों की जरूरत महसूस की जा रही है।

गिरफ्तारियों से उभरा खतरनाक पैटर्न

हाल में हुई गिरफ्तारियों और पूछताछ से एक खास पैटर्न सामने आया है। जांच के दौरान पता चला कि आरोपी डॉक्टर आदिल रैदर, उसके भाई डॉक्टर मुफज्ज़र रैदर और डॉक्टर मुज़म्मिल गनई जैसे युवाओं का किसी भी तरह की राष्ट्रविरोधी गतिविधियों से कोई पूर्व संबंध नहीं था। इन युवाओं के परिवार भी हमेशा से मुख्यधारा में रहे हैं और इनके नाम कभी किसी अपराध में नहीं आए। यहां तक कि दिल्ली ब्लास्ट में इस्तेमाल कार के चालक डॉक्टर उमर नबी का भी कोई पुराना रिकॉर्ड नहीं था। इस वजह से सुरक्षा एजेंसियों के लिए इन युवाओं पर पहले से संदेह कर पाना असंभव था।

White Collar Terrorist Module: जम्मू-कश्मीर में आतंक का नया चेहरा, व्हाइट-कालर मॉड्यूल ने सुरक्षा एजेंसियों की नींद उड़ाई

भरोसे की आड़ में छिपा व्हाइट कॉलर आतंकी नेटवर्क

सुरक्षा एजेंसियों का कहना है कि यह पूरा नेटवर्क ‘व्हाइट कॉलर टेरर मॉड्यूल’ है, जो भरोसे की आड़ में खुद को छिपाए हुए था। एक अधिकारी ने कहा कि यह सोचना भी मुश्किल है कि डॉक्टर जैसे पढ़े-लिखे लोग आतंकवाद में शामिल हो सकते हैं। इसी भरोसे ने इस मॉड्यूल को इतनी देर तक सफलतापूर्वक छिपाए रखा। बताया जा रहा है कि इस मॉड्यूल को जम्मू कश्मीर में सक्रिय आतंकी सरगनाओं या पाकिस्तान में बैठे आतंकियों ने रणनीति के तहत तैयार किया है ताकि सुरक्षा एजेंसियों को भ्रमित किया जा सके।

दो दशक पहले की आतंक रणनीति से बिल्कुल अलग साजिश

अधिकारियों के अनुसार यह नई साजिश दो दशक पहले की आतंकवादी भर्ती रणनीति से काफी अलग है। 2000 के शुरुआती वर्षों से लेकर 2020 तक आतंक संगठन उन युवाओं को भर्ती करते थे जो पहले से किसी न किसी रूप में अलगाववाद या आतंकवाद के संपर्क में होते थे। लेकिन अब आतंकियों ने रणनीति बदल दी है और शिक्षित, सम्मानजनक परिवारों से आने वाले युवाओं को निशाना बनाया जा रहा है। इससे सुरक्षा एजेंसियों के लिए असली और नकली संदिग्धों में फर्क करना और मुश्किल हो गया है।

चुनौती बड़ी, लेकिन सुरक्षा एजेंसियां सतर्क

इस व्हाइट कॉलर मॉड्यूल के उजागर होने के बाद सुरक्षा एजेंसियां और सतर्क हो गई हैं। जांच एजेंसियां अब ऐसे युवाओं की गतिविधियों पर भी नजर रख रही हैं जो दिखने में पूरी तरह सामान्य और पढ़े-लिखे हों। विशेषज्ञों का मानना है कि आतंक संगठन समाज में भरोसेमंद चेहरों का इस्तेमाल कर भारत की सुरक्षा व्यवस्था को चुनौती देना चाहते हैं। आने वाले दिनों में जांच और भी गहरी होगी और इस पूरे मॉड्यूल के पीछे बैठे मास्टरमाइंड तक पहुंचने की कोशिश जारी रहेगी। यह साफ है कि आतंकवाद का यह नया चेहरा ज्यादा खतरनाक और अधिक गुप्त है, जिसे समाप्त करने के लिए बहुआयामी रणनीति अपनानी होगी।

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