J&K students association: देश को PM की आवाज़ का इंतज़ार—कश्मीरी स्टूडेंट्स पर बढ़ती चिंता का असली सच क्या?

J&K students association: दिल्ली के लाल क़िला ब्लास्ट और “व्हाइट कॉलर टेरर मॉड्यूल” मामले में डॉक्टरों की गिरफ़्तारी के बाद फ़रीदाबाद पुलिस ने शहर में किराए पर रहने वाले 2,000 से अधिक कश्मीरी छात्रों से पूछताछ की है। जम्मू-कश्मीर के छात्रों ने आरोप लगाया है कि बिना किसी ठोस आधार के उनसे बार-बार सवाल-जवाब किए जा रहे हैं, मानो उन पर सामूहिक संदेह किया जा रहा हो। छात्रों के संगठन का कहना है कि इस तरह की कार्रवाई न केवल भय पैदा कर रही है बल्कि उन्हें असुरक्षित और अलग-थलग महसूस करा रही है। कई छात्रों ने बताया कि पुलिस की इस पूछताछ का उनके पढ़ाई और दैनिक जीवन पर बड़ा असर पड़ा है।
जम्मू-कश्मीर स्टूडेंट्स एसोसिएशन ने बयान जारी कर कहा कि उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली में पढ़ रहे कश्मीरी छात्रों को प्रोफाइलिंग, धमकी और बेदखली का सामना करना पड़ रहा है। राष्ट्रीय संयोजक नासिर खुएहामी ने बताया कि कई मकान मालिकों ने कश्मीरी किरायेदारों को कमरों से खाली करने के नोटिस दे दिए हैं, जिससे कई छात्र डर के चलते अपने घर लौटने को मजबूर हो गए हैं। उन्होंने यह भी कहा कि कश्मीरी छात्र भारत के लोकतंत्र और मुख्यधारा के मूल्यों में विश्वास रखते हैं और आतंकवाद के हर रूप का विरोध करते हैं। इसके बावजूद उन पर अविश्वास और संदेह का माहौल बनाया जा रहा है। खुएहामी ने कहा कि हालात इतने तनावपूर्ण हैं कि “वेरीफिकेशन ड्राइव” अनेक उन संस्थानों में भी चल रही है जिनका मामले से कोई संबंध नहीं है। इससे छात्रों के मन में भय और असुरक्षा और गहरी हो गई है।
प्रधानमंत्री से हस्तक्षेप की मांग—“कश्मीरी भी भारतीय, उन्हें बराबरी और सुरक्षा मिले”
छात्र संगठन ने प्रधानमंत्री से अपील की है कि वे कश्मीरी छात्रों के लिए एक स्पष्ट और भरोसा दिलाने वाला संदेश दें ताकि देश में एकता और विश्वास मजबूत हो सके। खुएहामी ने कहा, “कश्मीरियों के लिए एक आश्वस्ति भरा संदेश भारत को अधिक समावेशी और सौहार्दपूर्ण बनाएगा। हर कश्मीरी भारत के सामूहिक भविष्य का अभिन्न हिस्सा है।” उन्होंने यह भी कहा कि दिल्ली धमाके में मारे गए लोगों को लेकर पूरा जम्मू-कश्मीर शोक में है। “उनका दर्द हमारा दर्द है, उनका दुख पूरे देश का दुख है।” संगठन ने स्पष्ट किया कि वे जांच एजेंसियों को पूरा सहयोग देने के लिए तैयार हैं ताकि दोषी पकड़े जा सकें। उन्होंने कहा, “आतंक का न कोई धर्म होता है, न मज़हब, न क्षेत्र। जो भी इस कृत्य में शामिल है वह न कश्मीर का दोस्त है, न किसी धार्मिक समुदाय का।”
“सामूहिक संदेह खतरनाक”—भेदभाव और डर से राष्ट्रीय एकता कमजोर होती है
खुएहामी ने चेतावनी दी कि कश्मीरी छात्रों के खिलाफ सामूहिक संदेह न केवल अन्यायपूर्ण है बल्कि राष्ट्रहित के लिए भी खतरनाक है। उन्होंने कहा कि एक ऐसा समाज जो अपने ही लोगों को ‘दूसरा’ मानने लगे, वह बेहद ख़तरनाक रास्ते पर चलता है। उन्होंने कहा कि कश्मीरी छात्र देश भर के विश्वविद्यालयों, अस्पतालों, टेक्नोलॉजी सेंटरों, स्टार्ट-अप्स और सार्वजनिक संस्थानों में योगदान दे रहे हैं। उन्हें सुरक्षा और गरिमा मिलनी चाहिए—ना कि भय, शंका और नफ़रत। संगठन ने ज़ोर देकर कहा कि जांच एजेंसियों को निष्पक्षता और संवेदनशीलता के साथ काम करने दिया जाना चाहिए, लेकिन निर्दोष कश्मीरियों को शक के बोझ तले नहीं दबाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, “राष्ट्रीय सुरक्षा अविश्वास और आरोपों से नहीं, बल्कि न्याय, पारदर्शिता और एकता से मजबूत होती है।





