Mobile Addiction: बच्चे और युवा मोबाइल की लत से परेशान, डिजिटल सीमाएं बनाकर बनाएं जीवन स्वस्थ और खुशहाल

Mobile Addiction: आज के दौर में सुबह से लेकर रात तक हमारी उंगलियां मोबाइल और लैपटॉप की स्क्रीन पर लगातार घूमती रहती हैं। लेकिन महाराष्ट्र के सांगली जिले का एक छोटा सा गांव मोहित्यानचे वडगांव हर शाम 7 बजे डिजिटल डिटॉक्स का संदेश देता है। इस समय पूरे गांव के लोग मोबाइल फोन और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को छोड़कर असली दुनिया में लौट आते हैं। बच्चे होमवर्क करते हैं, परिवार वाले साथ बैठकर बातें करते हैं और courtyard में टहलते हैं। इस एक घंटे को वे ‘ऑफलाइन हीलिंग’ या ‘मन की मरम्मत’ कहते हैं। यह गांव उस आदर्श जीवन का उदाहरण है जिसकी दुनिया भर में तलाश है।
स्क्रीन थकान और मानसिक तनाव की बढ़ती समस्या
आज लगभग 73% लोग दिन में 6 से 7 घंटे स्क्रीन के सामने बिताते हैं। इससे स्क्रीन फटिग यानी मानसिक थकान, अटेंशन ड्रेन यानी ध्यान कम होना, और फैंटम वाइब्रेशन जैसी समस्याएं होती हैं। कोविड के बाद बच्चों पर इसका और भी ज्यादा असर दिख रहा है। अयोध्या मेडिकल कॉलेज में एक किशोर में ‘नोमोफोनिया’ यानी मोबाइल से दूर रहने का डर पाया गया। वह दिनों तक कमरे से बाहर नहीं आता था और आभासी दुनिया को वास्तविक समझने लगा था। यह ‘एल्गोरिदम ट्रैप’ की वजह से होता है, जो लगातार एक ही प्रकार की सामग्री दिखाकर आपको फंसा लेता है। यह समस्या नींद, आत्मविश्वास और रिश्तों पर भी बुरा प्रभाव डालती है।

मोबाइल और लैपटॉप से बढ़ रही बीमारियां
मोबाइल फोन और लैपटॉप पर काम करने से बीमारियां भी तेजी से बढ़ रही हैं। खासकर 14 से 24 साल के युवा इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं। पिछले एक साल में इनके केस 15 से 20 प्रतिशत बढ़े हैं। युवा दिन में 5-6 घंटे मोबाइल पर बिताते हैं जबकि एमएनसी में काम करने वाले 8-6 घंटे लैपटॉप और 5-6 घंटे मोबाइल पर। लगभग 20% छात्र मोबाइल फोन का अधिक उपयोग करते हैं। मोबाइल की लत के कारण 60% लोगों को नींद की समस्या होने लगी है।
स्मार्टफोन से आँखों को हो रहा गंभीर नुकसान
मोबाइल फोन की नीली रोशनी रेटिना को नुकसान पहुंचाती है और लंबे समय तक फोन इस्तेमाल करने से दृष्टि कमजोर हो जाती है। स्मार्टफोन विजन सिंड्रोम की शिकायतें भी बढ़ रही हैं जिनमें आंखों की सूखापन, सूजन, लालिमा, तेज रोशनी में दिक्कत और नजर कमजोर होना शामिल हैं। यह समस्या खासकर उन बच्चों और युवाओं में ज्यादा देखी जा रही है जो फोन का अत्यधिक उपयोग करते हैं।
डिजिटल सीमाएं तय करना आवश्यक
डिजिटल उपकरणों के बढ़ते प्रभाव से बचने के लिए ‘डिजिटल बाउंड्री’ बनाना जरूरी हो गया है। रात को ‘नो फोन जोन’ बनाना चाहिए जिससे मोबाइल का उपयोग बंद हो। भोजन के दौरान स्क्रीन बंद रखें और परिवार के साथ वास्तविक बातचीत का समय निकालें। बच्चों पर ध्यान देना आवश्यक है क्योंकि 90% माता-पिता इस बात को नजरअंदाज करते हैं। डिजिटल Detox के जरिए हम अपनी मानसिक और शारीरिक सेहत को बेहतर बना सकते हैं और अपने रिश्तों को मजबूत कर सकते हैं। यह एक स्वस्थ और संतुलित जीवन का रास्ता है।





