जम्मू और कश्मीर

Jammu-Kashmir: क्या संसद में शुरू हुआ सांस्कृतिक पुनर्जागरण? सत शर्मा ने खोला बड़ा राज!

Jammu-Kashmir भाजपा अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद सट शर्मा (सीए) ने संसद में अपना पहला और प्रभावशाली भाषण देते हुए वंदे मातरम् विधेयक का पुरजोर समर्थन किया। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार को पूरे एक वर्ष वंदे मातरम् के सम्मान को समर्पित करने के निर्णय के लिए बधाई दी। इसे उन्होंने “ऐतिहासिक सांस्कृतिक पुनर्जागरण” करार दिया और कहा कि यह पहल भारतीय सभ्यता, संस्कृति और राष्ट्रीय गौरव के प्रति सरकार की गहरी निष्ठा को दर्शाती है। सट शर्मा ने कहा कि भारत जहाँ 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ, वहीं जम्मू-कश्मीर 26 अक्टूबर को राष्ट्र के साथ पूर्ण रूप से एकीकृत हुआ। उन्होंने उन दर्दनाक दिनों को याद किया जब जम्मू-कश्मीर के लोगों को वंदे मातरम् गाने पर गोलियों, अत्याचारों और भेदभाव का सामना करना पड़ा। 1952–53 के बीच जौरियां, सुंदेरबनी, हीरानगर और रामबन के कई निर्दोष लोगों को सिर्फ राष्ट्रीय गीत गाने पर शहीद होना पड़ा था। उन्होंने भीकम दास का उल्लेख किया, जो विवाह के सिर्फ सात दिन बाद तिरंगा लेकर चलने पर शहीद कर दिए गए थे।

डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान और धारा 370 पर बड़ा उल्लेख

अपने भाषण में सट शर्मा ने याद दिलाया कि कैसे डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जम्मू-कश्मीर पर लागू दो संविधान और दो प्रतीकों के खिलाफ संघर्ष करते हुए अपना बलिदान दिया। उन्होंने कहा कि राज्य ने स्वतंत्रता के बाद भी अलगाववाद, आतंकवाद और अनगिनत कठिनाइयों का सामना किया। लेकिन यह संघर्ष 5 अगस्त 2019 को अभूतपूर्व मोड़ पर पहुँचा जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में धारा 370 समाप्त कर दी गई। उन्होंने कहा कि इस ऐतिहासिक निर्णय से पहले बच्चे पत्थर स्कूल बैग में लेकर चलने को मजबूर थे, गोरखा समुदाय वोट नहीं कर सकता था, राज्य की बेटियाँ शादी कर बाहरी राज्यों में जाने पर अपने अधिकार खो देती थीं, वाल्मीकि समुदाय के लोग नागरिक अधिकारों से वंचित थे और पश्चिम पाकिस्तान शरणार्थियों को विधानसभा से बाहर रखा गया था। मोदी सरकार ने इन सभी को समानता, सम्मान और न्याय दिलाकर उनके जीवन में वास्तविक परिवर्तन लाया है।

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पूर्व राजनीतिक नेतृत्व पर हमला, वंदे मातरम् के इतिहास का उल्लेख

सट शर्मा ने अपने भाषण में पुराने राजनीतिक नेतृत्व पर भी सीधा प्रहार किया और कहा कि उन्हीं की नीतियों ने जम्मू-कश्मीर को दशकों तक पीड़ा और पिछड़ेपन में धकेला। उन्होंने मोदी सरकार के राष्ट्रवादी कदमों की सराहना की, विशेषकर वंदे मातरम् के सम्मान में जारी किए गए स्मारक डाक टिकट और सिक्कों की घोषणा को “भारत की सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का गौरवपूर्ण प्रतीक” बताया। उन्होंने वंदे मातरम् के गौरवशाली इतिहास का उल्लेख करते हुए बताया कि यह गीत बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने 1875 में लिखा था और यह स्वतंत्रता संघर्ष की धड़कन बन गया। उन्होंने कांग्रेस की 1937 की उस कार्य समिति के फैसले की आलोचना की जिसमें गीत की सिर्फ दो कड़ियों को स्वीकार किया गया था। सट शर्मा ने सवाल उठाया कि आखिर वे “अन्य लोग” कौन थे जिनकी आपत्तियों के आधार पर यह फैसला लिया गया? उन्होंने उस दौर के कुछ नेताओं, जिनमें शेख अब्दुल मजीद भी शामिल थे, के विरोध का उल्लेख किया, जिन्होंने वंदे मातरम् के स्थान पर ‘सारे जहां से अच्छा’ को गीत बनाने का सुझाव दिया था।

वंदे मातरम् के 150 वर्ष: सांस्कृतिक अस्मिता का उत्सव

सट शर्मा ने कहा कि वंदे मातरम् के 150 वर्ष पूरे होने का अवसर भारत की सांस्कृतिक आत्मा और राष्ट्रीय अस्मिता का सबसे बड़ा उत्सव है। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार इस गीत को नई पीढ़ी तक पहुँचाकर भारतीयता, स्वदेशी भावना और राष्ट्र के प्रति गर्व को मजबूत कर रही है। उन्होंने स्कूल पुस्तकों में वंदे मातरम् के शामिल होने का स्वागत किया और कहा कि इससे बच्चों में देशभक्ति का स्वाभाविक भाव पैदा होता है। उन्होंने पंडित दीनदयाल उपाध्याय के संदेश—“लोक शक्ति का निर्माण करके स्वराज से सुराज बनाना”—का उद्धरण देते हुए कहा कि वंदे मातरम् विधेयक भारत की उसी यात्रा का प्रतीक है जहाँ राजनीतिक स्वतंत्रता के साथ-साथ सांस्कृतिक गौरव पर आधारित सुशासन की स्थापना की जा रही है।

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