अनुच्छेद 370 हटने की पांचवीं सालगिरह से पांच दिन पहले जम्मू-कश्मीर सरकार ने पश्चिम पाकिस्तान शरणार्थियों को बड़ा तोहफा दिया है। इनके साथ लंबे समय से चले आ रहे भेदभाव को समाप्त करते हुए सरकार ने राज्य भूमि का मालिकाना हक दे दिया है। इससे जम्मू संभाग के जम्मू, कठुआ व राजोरी में बसने वाले लोगों को फायदा पहुंचेगा। सात दशक बाद 2019 में इन्हें नागरिकता और वोट देने का अधिकार मिला था।
उप राज्यपाल मनोज सिन्हा की अध्यक्षता में हुई प्रशासनिक परिषद की बैठक में तय किया गया कि पश्चिम पाकिस्तान से आए शरणार्थियों को सरकारी भूमि का मालिकाना हक दे दिया जाए। इसके साथ ही 1965 के विस्थापितों को भी मालिकाना हक दिया गया है। सरकार 1947 व 1971 के विस्थापितों की तरह 1965 के विस्थापितों को भी सुविधाएं देने के लिए प्रतिबद्ध है। यह भी तय किया गया कि राजस्व विभाग यह सुनिश्चित करेगा कि मिले अधिकारों का दुरुपयोग न होने पाए। खासकर सरकारी भूमि पर कब्जे आदि मामले में।
पीओजेके विस्थापितों के बराबर हुई सुविधाएं
सरकार के इस फैसले से हजारों परिवारों को लाभ पहुंचेगा। यह लोग पिछले कई दशक से मालिकाना हक की मांग कर रहे थे। सरकार के इस फैसले से अब वह पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर (पीओजेके) के विस्थापितों के बराबर सुविधाएं हासिल कर सकेंगे। प्रशासनिक परिषद की बैठक में सलाहकार राजीव राय भटनागर, मुख्य सचिव अटल डुल्लू तथा उप राज्यपाल के प्रमुख सचिव डॉ. मनदीप भंडारी मौजूद रहे।
5764 परिवार, 46666 कनाल जमीन आवंटित
सरकारी दस्तावेजों के अनुसार, 1947 में देश विभाजन के बाद पश्चिमी पाकिस्तान के कई इलाकों से पलायन कर 5764 परिवार यहां पहुंचे थे और जम्मू संभाग के विभिन्न स्थानों पर बस गए थे। ये जम्मू में आरएस पुरा के इलाके बडियाल काजिया, जंगलैड, कुतुब निजाम, चौहाला आदि में रहते हैं। इसके साथ ही खौड़ में भी इनकी आबादी है। 1954 में शरणार्थियों को 46666 कनाल (2.37 करोड़ वर्ग फीट) राज्य सरकार की भूमि आवंटित की गई।
हालांकि, पश्चिम पाकिस्तान शरणार्थी संघर्ष समिति का कहना है कि उसके पास 21159 परिवारों का रिकॉर्ड उपलब्ध है। कठुआ में हीरानगर, कीड़ियां गंडियाल और अखनूर में बसे लोगों ने दरिया और खड्ड किनारे की जमीनों को समतल कर खेती करना शुरू कर दिया। पिछले 60 साल से इनके नाम गिरदावरी (जमीन पर कब्जे व फसल चक्र की रिपोर्ट) चल रही थी। लेकिन तीन साल पहले यह सारी गिरदावरियां कट गईं। यहां सरकारी जमीन का बोर्ड लगा दिया गया और खेती न करने को कहा गया। हालांकि, सरकार ने जमीन नहीं ली थी, लेकिन जमीन जाने का खतरा मंडराने की वजह से यह परिवार चिंतित था।